शनिवार, 18 जनवरी 2020

दिल्ली को एक अर्जुन चाहिए

दिल्ली को एक अर्जुन चाहिए

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और चुनावी सरगर्मियां गरमा रही है। इन चुनावों में भाजपा, कांग्रेस एवं आप के बीच संघर्ष होता हुआ दिखाई दे रहा है, दिल्ली के लोग वर्तमान नेतृत्व का विकल्प खोज रहे हंै जो सुशासन दे सके, विकास की अवरूद्ध स्थितियों के बीच कोई आश्वासन बने एवं जनता की बढ़ती परेशानियों पर नियंत्रण स्थापित करें। सभी पार्टियां सरकार बनाने का दावा पेश कर रही हैं और अपने को ही विकल्प बता रही हैं तथा मतदाता सोच रहा है कि दिल्ली में नेतृत्व का निर्णय मेरे मत से ही होगा। यह तय है कि मतदाता ही दिल्ली के नेतृत्व को निश्चित करेगा।
दिल्ली के चुनाव इस बार भाजपा के लिये बड़ी चुनौती है, संभवतः इन चुनावों के परिणाम भाजपा के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिये है कि उसने पिछले विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र एवं झारखण्ड जैसे महत्वपूर्ण प्रांत खो दिये हैं। दिल्ली के चुनाव परिणाम उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। भाजपा की पिछली चुनावी रणनीति के केंद्र में राष्ट्रीय मुद्दे हमेशा छाए रहे हैं। कुछ चुनावों को छोड़ दें तो अब तक उसके नेता, जनता के बीच राम मंदिर, अनुच्छेद 370, पाकिस्तान और तीन तलाक जैसे संवेदनशील विषयों पर बोलते रहे हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव इनमें अपवाद हो सकता है और उसे ऐसा करना ही होगा। रणनीति के तहत भाजपा दिल्ली में स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाएगी। पार्टी की एक उच्च स्तरीय मीटिंग में सभी नेताओं को इससे जुड़े निर्देश दिये भी गए हैं। प्रमुख मुद्दों की पहचान कर प्रदेश के विशेष नेताओं को उन मुद्दों पर काम करने की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। कांग्रेस ही स्थिति दिल्ली में भी मजबूत दिखाई नहीं दे रही है। आम आदमी पार्टी की स्थिति अवश्य मजबूत दिखाई दे रही है, वह भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मुख्य पार्टियों के लिये गंभीर चुनौती बनी हुई है। अरविन्द केजरीवाल ने अपने कार्यकाल में अन्तिम पांच-छह माह में शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, जल, बिजली एवं अन्य स्थानीय समस्याओं पर सकारात्मक वातावरण बनाकर जनता के मन में जगह बना ली है।
आज दिल्ली को एक सफल एवं सक्षम नेतृत्व की अपेक्षा है, जो राष्ट्रहीत के साथ-साथ दिल्ली के विकास को सर्वोपरि माने। दिल्ली को एक अर्जुन चाहिए, जो मछली की आंख पर निशाने की भांति भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराध, महंगाई, बेरोजगारी, वायु प्रदूषण, पानी-बिजली, शिक्षा-स्वास्थ्य, सीलिंग व आर्थिक मंदी एवं पूर्ण राज्य का दर्जा आदि मुद्दे एवं समस्याओं पर ही अपनी आंख गडाए रखें। लेकिन दिल्ली के राजनीतिक परिवेश एवं तीनों राजनीतिक दलों की वर्तमान स्थितियों को देखते हुए बड़ा दुखद अहसास होता है कि किसी भी राजनीतिक दल में कोई अर्जुन नजर नहीं आ रहा जो मछली की आंख पर निशाना लगा सके। कोई युधिष्ठिर नहीं जो धर्म का पालन करने वाला हो। ऐसा कोई नेता नजर नहीं आ रहा जो स्वयं को संस्कारों में ढाल, मजदूरों की तरह श्रम करने का प्रण ले सके। जो लोग किन्हीं आदर्शो एवं मूल्यों के साथ राजनीति में उतरे थे परन्तु राजनीति की चकाचैंध ने उन्हें ऐसा धृतराष्ट्र बना दिया कि मूल्यों की आंखों पर पट्टी बांध ये जनता का भाग्य बनाने की बजाय अपना राजनीतिक जीवन की भाग्यरेखा बनाते रहे।
दिल्ली में 1731 कच्ची कॉलोनी में मालिकाना हक का मुद्दा महत्वपूर्ण है। इस पर आप और कांग्रेस का कहना है कि केवल मालिकाना हक से कॉलोनियां नियमित नहीं हो जाती हैं। जबकि यही ऐसा मुद्दा है जिसे भाजपा दिल्ली में जीत का माध्यम बनाना चाहती है। सीएए दिल्ली के लिये भी महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन इस मुद्दे पर दिल्ली में कई जगह हिंसा हुई। ‘आप’ और कांग्रेस इसका विरोध कर रही हैं, जबकि भाजपा दोनों पार्टियों पर हिंसा एवं अराजकता भड़काने का आरोप लगा रही है। दिल्ली के लिये स्वास्थ्य एवं शिक्षा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, ‘आप’ मोहल्ला क्लीनिक, मुफ्त इलाज जैसी सुविधाओं पर जोर दे रही है जबकि भाजपा ‘आप’ पर आरोप लगा रही है कि उसनेे आयुष्मान योजना लागू नहीं करने दिया। ‘आप’ के लिए शिक्षा का मुद्दा विशेष महत्व रखता है। पार्टी शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों को जनता के सामने जोर-शोर से रखेगी। शिक्षा के लिए बजट का भी विशेष आवंटन किया है। जबकि इस मुद्दे पर भाजपा की स्थिति प्रश्नों से घिरी है, क्योंकि दिल्ली में तीनों महानगर पालिकाओं पर भाजपा का कब्जा है और उनके द्वारा संचालित स्कूलों की स्थिति दयनीय है।
‘आप’ नई बसें और सड़कों में सुधार को लेकर जनता के बीच जा सकती है। लेकिन आप ने इस दिशा में दिल्ली की जनता को निराश ही किया है। भाजपा ईस्टर्न-वेस्टर्न पेरिफेरल वे को लेकर किए गए कार्य को केंद्र में रखेगी। केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी की सुविधा आगे भी जारी रहेगी। भाजपा पांच गुना और कांग्रेस 600 यूनिट तक सब्सिडी का वादा कर रही है। लेकिन प्रश्न है कि मुफ्त की यह संस्कृति लोकतंत्र में क्यों एवं कैसे जायज है? क्या जनता को रोजगार एवं निर्माण कार्यों की ओर अग्रसर करने की बजाय उसे अकर्मण्य नहीं बनाय जा रहा है? पानी की गुणवत्ता एवं वायु प्रदूषण जैसे मुद्दे भी इन चुनावों में उठेंगे। सीलिंग व आर्थिक मंदी एवं पूर्ण राज्य का दर्जा जैसे मुद्दों पर तीनों दलों की भावी रणनीति भी इन चुनावों में जीत का माध्यम बनेगी।
दिल्ली की राजनीति विसंगतियों एवं विषमताओं से ग्रस्त है। राजनीतिक दल ईमानदार और पढ़े-लिखे, योग्य लोगों को उम्मीदवार बनायेंगे, ऐसी उम्मीद नजर नहीं आती एवं राजनीति में सुधार की अवधारणा अभी संदिग्ध ही दिखाई दे रही है। फिर भी हम आशा करते है कि कोई मूल्यों की राजनीति के रास्ते पर चले और राजनीति को विकृतियों से छुटकारा दिलायेे। इसके लिये यह चुनाव एक क्रांति का माध्यम बनना चाहिए, दिल्ली को सम्पूर्ण क्रांति की नहीं, सतत क्रांति की आवश्यकता है। ऐसी क्रांति जो देश-सेवा के स्थान पर स्व-सेवा में ही एक सुख मानने वालों से निजात दिलाये। आधुनिक युग में नैतिकता जितनी जरूरी मूल्य हो गई है उसके चरितार्थ होने की सम्भावनाओं को उतना ही कठिन कर दिया गया है। ऐसा लगता है मानो ऐसे तत्व पूरी तरह छा गए हैं। खाओ, पीओ, मौज करो। सब कुछ हमारा है। हम ही सभी चीजों के मापदण्ड हंै। हमें लूटपाट करने का पूरा अधिकार है। हम समाज में, राष्ट्र में, संतुलन व संयम नहीं रहने देंगे। यही आधुनिक सभ्यता का घोषणा पत्र है, जिस पर लगता है कि हम सभी ने हस्ताक्षर किये हैं। भला इन स्थितियों के बीच वास्तविक जीत कैसे हासिल हो? आखिर जीत तो हमेशा सत्य की ही होती है और सत्य इन तथाकथित राजनीतिक दलों के पास नहीं है। इसके लिये जरूरी है कि मतदाता जागे। आज भी मतदाता विवेक से कम, सहज वृति से ज्यादा परिचालित हो रहा है। इसका अभिप्रायः यह है कि मतदाता को लोकतंत्र का प्रशिक्षण बिल्कुल नहीं हुआ।
दिल्ली के इन चुनावों में हमें किसी पार्टी विशेष का विकल्प नहीं खोजना है। किसी व्यक्ति विशेष का विकल्प भी नहीं खोजना है। विकल्प तो खोजना है भ्रष्टाचार का, अकुशलता का, प्रदूषण का, भीड़तंत्र का, गरीबी के सन्नाटे का, महंगाई का, राजनीतिक अपराधों का। यह सब लम्बे समय तक त्याग, परिश्रम और संघर्ष से ही सम्भव है। जिसका हार्द है कि स्वस्थ लोकतंत्र का सही विकल्प यही है कि हम ईमानदार, चरित्रवान और जाति-सम्प्रदाय से नहीं बंधे हुए व्यक्ति को अपना मत दें। सही चयन से ही दिल्ली का सही निर्माण होगा। धृतराष्ट्र की आंखों में झांक कर देखने का प्रयास करेंगे तो वहां शून्य के सिवा कुछ भी नजर नहीं आयेगा। इसलिए हे मतदाता प्रभु! जागो! ऐसी रोशनी का अवतरण करो जो दुर्योधनों के दुष्टों को नंगा करें और अर्जुन के नेक इरादों से दिल्ली के जन-जन को प्रेरित करें।

प्रेषकः

ललित गर्ग



source https://krantibhaskar.com/delhi-needs-an-arjun/

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