मंगलवार, 27 अगस्त 2019

पर्युषण का मतलब आत्मा की पूर्ण उपासना: संत चंद्रप्रभ

पर्युषण का मतलब आत्मा की पूर्ण उपासना: संत चंद्रप्रभ

जोधपुर। संत चंद्रप्रभ महाराज ने कहा कि पर्युषण का मतलब है आत्मा की पूर्ण उपासना करना, पापों का प्रक्षालन करना और साल भर किए गए दोषों और अपराधों के लिए क्षमायाचना करना। उन्होंने कहा कि पर्युषण के तीन उद्देश्य है- मानव-मानव को आपस में जोडऩा, हृदय को संशोधित करना और मन की गांठों को खोलकर प्रेम और मैत्री का विस्तार करना। हमें पर्युषण में एक डायरी रखनी चाहिए और उसमें साल भर में किए गए पापों का लेखा-जोखा करना चाहिए। चलते समय, खाते समय, बोलते समय, बनाते समय, व्यापार आदि कार्य करते समय जो भी हमसे जानते-अजानते दोष हुए हैं उन्हें धीरज के साथ लिखकर चिंतन करना चाहिए और अंतिम दिन दिल से क्षमा याचना करनी चाहिए तभी हमारा पर्यूषण पर्व सार्थक हो पाएगा। संतप्रवर मंगलवार को गांधी मैदान में पर्युषण पर्व के संदेश एवं कत्र्तव्य विषय पर शहरवासियों को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि केवल मोक्ष और मुक्ति की बातें करने से फायदा होने वाला नहीं है, हमें स्वयं के आचरण को आईने में देखना होगा और आत्म निरीक्षण कर मिच्छामि दुक्कड़म देना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास और कोई डिग्री हो तो ठीक, पर कम से कम 1 डिग्री अवश्य होनी चाहिए और वह है एम.डी. अर्थात मिच्छामि दुक्कड़म। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद लोकसभा में सबसे मिच्छामी दुक्कड़म बोला था वैसे ही हमें पर्युषण में साल भर हुए गलत कार्यों के लिए सरल हृदय से मिच्छामि दुक्कड़म बोलना होगा तभी हमारी आत्मा की सद्गति-मुक्ति हो पाएगी। उन्होंने कहा कि पर्यूषण का पहला कत्र्तव्य है – जिनेंद्र पूजा। तीर्थंकरों की पूजा व भक्ति करने से हमें सम्यकत्व की प्राप्ति होती है और सुख-शांति-समृद्धि के बंद द्वार खुलते हैं। उन्होंने कहा कि हमें रोज मंदिर जाना चाहिए और वहां पर परमात्मा की पूजा और सेवा करनी चाहिए। जैसे हवा सब जगह है, पर पंखे से तेज हवा आती है वैसे ही परमात्मा सब जगह है, पर मंदिर जाकर सेवा- पूजा करने से हमारी आराधना भी तेज हो जाती है। उन्होंने कहा कि पर्यूषण पर्व का दूसरा कत्र्तव्य है- गुरुजनों को वंदन करना। त्यागी, तपस्वी, संतों, मुनियों, गुरुजनों को वंदन करने से अहंकार का नाश होता है, जीवन का उद्धार होता है, आत्मा का कल्याण होता है, नवग्रह अनुकूल हो जाते हैं। जिस दिन आपको 10 संतों को प्रणाम करने का अवसर मिले उस दिन आप स्वयं को सौभाग्यशाली समझें। उन्होंने कहा कि पर्यूषण पर्व का तीसरा कर्तव्य है- सामायिक व्रत की आराधना अर्थात 48 मिनट तक समस्त सांसारिक कार्यों का त्याग करके स्वयं को साधना और आराधना के लिए समर्पित करना। सामयिक लेने से दान, शील, तप और भाव चारों धर्मों की आराधना हो जाती है। उन्होंने कहा कि पर्यूषण का चौथा कर्तव्य है-शास्त्रों का श्रवण करना और अंतिम कर्तव्य है तप का आचरण करना। हम अपने आप को तपस्वी बनाएं और अपने घर को तपोवन बनाएं। तपस्वियों की सेवा करने के लिए सदा तत्पर रहें। उन्होंने कहा कि रात में होने वाली ब्याहशादियों का भोजन करना अपने स्वास्थ्य के दुश्मन बनना है। ब्याहशादियां दिन में होनी चाहिए और हमें भोजन भी सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच में करना चाहिए।

इस दौरान मुनि शांतिप्रिय सागर ने जिनवाणी के तहत शास्त्र वाचन करवाते हुए सभी श्रद्धालुओं को अहिंसा सूत्र और संयम सूत्र का श्रवण करवाया। प्रवचन के शुभारंभ पर संबोधि महिला मंडल की बहनों ने गुरु भक्ति पर सुंदर भजन की प्रस्तुति दी जिसे सुनकर सारे श्रद्धालु खड़े होकर नृत्य करने लग गए। मंच संचालन अशोक पारख ने किया। चातुर्मास समिति के संजय शाह ने बताया कि बुधवार को सुबह 8.30 बजे  नेहरू पार्क स्थित सुरेश गांधी के आवास से  कल्पसूत्र आगम और अंतकृत दशांग आगमों की शोभायात्रा निकलेगी जो 9 बजे गांधी मैदान पहुंचेगी जहां समस्त श्रद्धालुओं द्वारा शोभायात्रा का  स्वागत किया जाएगा। गांधी परिवार और श्रद्धालु राष्ट्रसंतों को आगम सूत्र समर्पित करेंगे जिनका पर्युषण पर्व के दौरान वाचन किया जाएगा। इसके अंतर्गत कल संत ललितप्रभ कल्पसूत्र आगम का रहस्य विषय पर जनमानस को संबोधित करेंगे।

 



source https://krantibhaskar.com/paryushan-means-soul/

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