बुधवार, 7 अगस्त 2019

जम्मू & कश्मीर : वर्तमान संदर्भ एवं भविष्य के मायने

जम्मू & कश्मीर : वर्तमान संदर्भ एवं भविष्य के मायने

आज जम्मू और कश्मीर में आशाओं-उम्मीदों का एक नया सूर्य उदित हुआ है। इस सूर्योदय का सपना हम भारतवासी पिछले 72 सालों से लगातार देखते  आए हैं। निश्चित रूप से यह भारतीय इतिहास में जुड़ा एक स्वर्णिम अध्याय है। भारत एक संविधान पोषित लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसमें कल तक कुल 29 राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेश थे। लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार के सार्थक प्रयास की बदौलत, राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद, संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू ) आदेश, 2019 के लागू होते ही अनुच्छेद-370 लगभग अप्रभावी हो गया। लगभग इसलिए, क्योंकि अनुच्छेद-370 का खंड-एक, जो कि भारतीय राष्ट्रपति को खास विशेषाधिकार देता है, को अभी समाप्त नहीं किया गया है। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल भी 61 के मुक़ाबले 125 मतों से राज्य सभा में पारित हो गया। लोकसभा में तो पास हो ही जाएगा। राष्ट्रपति महोदय का हस्ताक्षर होने के बाद यह कानून की परिणति प्राप्त कर लेगा।

परिणामस्वरूप जम्मू और कश्मीर विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र और लद्दाख को बिना विधायिका वाला केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया जाएगा। अनुच्छेद-370 के खंड एक के सिवा इसके सभी खंडों को रद्द कर दिया गया। दरअसल खंड एक भारत के राष्ट्रपति को कई अधिकार देता है। इसके तहत राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर के ‘राज्य विषयों’ के लाभ के लिए संविधान में “अपवाद और संशोधन” करने की ताकत रखता है। इसी ताकत का इस्तेमाल करते हुए सरकार ने इसके प्रावधानों को खत्म कर दिया है। हालांकि खंड एक बना रहेगा। मेरे ख्याल से उसे समाप्त करने की जरूरत भी नहीं है। क्योंकि धारा-370 का खंड एक ही, वह प्रावधान है, जिसके बदौलत या यूं कह लें कि जिसके दम पर आज सरकार ने दशकों से चली आ रही ऐसी परंपरा को तोड़ा है; जिसके जकड़न में फँसने के कारण ही जम्मू और कश्मीर में अलगाववाद का बोल-बाला इतना बढ़ चुका था कि वहाँ भारत विरोधी क्रिया-कलाप दिन-दहाड़े होने लगे थे। अनुच्छेद 370 एवं 35A ने जम्मू और कश्मीर को विशेष प्रावधान जैसे- दोहरी नागरिकता, किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा जमीन न खरीद सकना, नौकरी न कर पाना, यहाँ के विश्वविद्यालयों में शिक्षा न ग्रहण कर पाना (केन्द्रीय विश्वविद्यालय को छोडकर), नागरिकता न मिल पाना, धारा-356, धारा-360, 1976 का शहरी भूमि क़ानून, आरटीआई-2005,  कैग(CAG) एवं आरटीई-2009 का लागू न होना आदि, प्राप्त था। इसके साथ ही साथ जम्मू एवं कश्मीर का एक अलग संविधान, और निशान भी उपलब्ध था। इसी को लेकर श्यामप्रसाद मुखर्जी जी ने अपना आंदोलन चलाया और उनका कई नारों में से एक सबसे प्रसिद्ध नारा ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान एवं दो निशान नहीं चलेगा’ था। विचारणीय है कि जम्मू एवं कश्मीर का भारत के साथ संविलय हुआ था न कि मर्जन।

बात 1947 के अक्टूबर माह की है। 26 अक्टूबर को राजा हरि सिंह को जब एहसास हुआ कि पाकिस्तानी लड़ाकूओं से निपटना मुश्किल है, तब उन्होंने भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के संविलियन पत्र ‘इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एक्‍सेशन’ पर हस्ताक्षर किए थे। इस पर हस्ताक्षर करते ही कश्मीर अधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया। इसके अगले दिन ही यानि 27 अक्टूबर, 1947 को भारत के तात्कालिक गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जम्मू कश्मीर को भारत का अंग मानने वाले आदेश पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिये। तभी से भारत में जम्मू और कश्मीर का संविलयन हो गया। इसके लगभग 7 साल बाद 14 मई, सन 1954 को तात्कालिक भारतीय राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने जम्मू कश्मीर की सरकार की सहमति से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 और 35A को जोड़ा, जिसने जम्मू और कश्मीर को कुछ विशेष प्रावधान मुहैया कराए। ध्यान रहे यह प्रावधान जम्मू कश्मीर की भलाई और विकास को ध्यान में रखते हुए किया गया था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। समय के साथ-साथ इसकी स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती गयी। हालात ऐसे हो गए कि धारा- 370 में समय-समय पर सुधार भी किया गया। लेकिन उसके बावजूद उम्मीद के मुताबिक सुधार हुआ नहीं और विगत कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर कि दोहरी व्यवस्था को समाप्त करने हेतु धारा-370 को हटाने की मांग उठने लगी। सन 2010 के बाद धारा-370 हटाने की मांग तेज हो गयी और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में तो नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने धारा-370 को हटाने का संकल्प पत्र जनता के बीच में रखा। परिणाम यह हुआ कि दोनों बार मोदी जी पूर्ण बहुमत में आए और सरकार बनाई। किसी को भी यह उम्मीद नहीं था कि सरकार गठन के महज दो महीने में ही इतना सब कुछ हो जाएगा। लेकिन वर्तमान मोदी सरकार ने यह ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सार्थक प्रयास किया और उसमें सफलता भी मिली। जिसकी बदौलत आज पूरे देश में जश्न का माहौल है और अब हम कह पा रहे हैं कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है। लेकिन इसके कुछ मायने हैं, कुछ चुनौतियां हैं, कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या जम्मू और कश्मीर के हालात के लिए केवल अनुच्छेद-370 ही जिम्मेदार था, क्या महक 370 को हटा देने से ही जम्मू और कश्मीर की स्थिति बदल जाएगी, बेरोजगारी दूर हो जाएगी, समान शिक्षा मिलने लगेगी, आरक्षण प्रभावी हो सकेगा, आतंकवाद का नंगा-नाच समाप्त हो जाएगा, हिन्दू-मुस्लिम एकता आबाद हो जाएगी; निः संदेह ऐसा नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा होता तो भारत के अन्य हिस्सों, विशेषकर उत्तर-प्रदेश में बेरोजगारी क्यों है, शासन व्यवस्था लाचार क्यों है, न्याय-व्यवस्था पारदर्शी क्यों नहीं है, तमाम भर्तियाँ भ्रष्टाचार की भेंट क्यों चढ़ गई हैं, भर्तियों को पूरा होने में पाँच-सात वर्ष कभी-कभी तो उससे भी अधिक क्यों लग जाता है; जबकि यूपी में तो कोई अनुच्छेद-370 जैसा प्रावधान नहीं है। तो फिर यह दलील देना कि अनुच्छेद-370 ही जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति का एक मात्र कारण है, कहाँ तक जायज है? यह ढ़ोल पीटना कि अनुच्छेद-370 के खात्मा से ही सब-कुछ ठीक हो जाएगा; यह महज उतना ही सही है, जितना कि दर्पण साफ करने से चेहरा साफ होता है। इसलिए मेरा मानना है कि जम्मू और कश्मीर की स्थिति के लिए जिम्मेदार, अनुच्छेद-370 के अलावा कई महत्वपूर्ण कारण और हैं, जिन्हें दूर करने के लिए सरकार को बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी। जोकि अब तक की सरकारों ने नहीं किया है। विचारणीय है कि जम्मू और कश्मीर को (जोकि एक सांवैधानिक राज्य था) अलग-अलग दो केंद्र-शासित प्रदेशों में विभाजित करना, कहाँ तक न्याय-संगत है? क्योंकि इससे वहाँ के आवाम का राजनैतिक अधिकार पहले से कम हो जाएगा, पुलिस-प्रशासन  केंद्र के अधीन हो जाएगी कुल मिलाकर शासन-प्रशासन सीधे केंद्र सरकार चलाएगी। विकास की तो बात ही छोड़ दीजिए। क्योंकि यदि दिल्ली को छोड़कर देखा जाय तो केंद्र-शासित प्रदेशों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। एक तरफ केंद्र-शासित प्रदेश पूर्ण राज्य की मांग कर रहे हैं, दूसरी तरफ नए केंद्र-शासित प्रदेश बनाए जा रहें है। अब सवाल पैदा होता है कि यह कैसी दूरदर्शिता है? परिवर्तन प्रकृति का नियम है। लेकिन हमें परिवर्तन और परिमार्जन में फर्क करना भी सीखना होगा। हमारा देश 55% से अधिक युवा आबादी वाला देश है। हमें इस मानव संसाधन का सदुपयोग दूरदर्शी नेतृत्व की सहायता से करने की आवश्यकता है। ताकि पूरा देश जम्मू और कश्मीर के इस संक्रमण कालखंड में सहयोग कर सके। हम सभी एक ही संविधान रूपी छतरी के नीचे प्रेम और सम्मान सहित, एक-दूसरे के सुख-दुःख को बांटते हुए, बिना किसी भेद-भाव, छूआ-छूत, ऊंच-नीच की भावना से ग्रसित हुए, आत्मिक संबंध से जीवन बसर करें। बहरहाल हमने 72 साल धारा-370 के विशेष प्रावधानों सहित जम्मू और कश्मीर को देख लिया है। अब बिना धारा-370 के जम्मू और कश्मीर की स्थिति में कहाँ तक सुधार हो सकेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।

विनोद कुमार – शोध छात्र (पी-एच. डी.)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र ।



source https://krantibhaskar.com/jammu-kashmir-current-context-and-future-meaning/

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