सोमवार, 15 जुलाई 2019

सुखी जीवन का एक ही मंत्र है नो नेगेटिव बी पॉजिटिव: संत ललितप्रभ

सुखी जीवन का एक ही मंत्र है नो नेगेटिव बी पॉजिटिव: संत ललितप्रभ

जोधपुर। संत ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि जिंदगी 3 पेज की डायरी का नाम है – जन्म, जीवन और मरण। जन्म कहां होगा और मृत्यु कैसे होगी यह ईश्वर के हाथ में है, पर जिंदगी को कैसे जीना है यह हमारे हाथ में है। उन्होंने कहा कि अगर हम गोरे है तो जब भी आइना देखें तो संकल्प ले कि मेरा चेहरा जितना सुंदर है मैं काम भी उतने ही सुंदर करूंगा और अगर हम काले हैं तो जब भी आइना देखे तो संकल्प लें कि मेरा चेहरा सुंदर नहीं है तो क्या हुआ मैं काम सुंदर करके दुनिया में खुद को स्थापित कर लूंगा। याद रखें, हमारी जिंदगी में चेहरे की कीमत 10 प्रतिशत है और चरित्र की कीमत 90 प्रतिशत। अगर कोई कहे कि हमारा स्वभाव और चरित्र बहुत सुंदर है तो समझना यह हमारी जीवन की असली जीत है।

संत प्रवर गांधी मैदान में आयोजित प्रवचन माला के दौरान जीवन निर्माण सप्ताह के पहले दिन 1 घंटे में सीखें जीने की कला विषय पर शहरवासियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीने का पहला मंत्र है बी पॉजिटिव नो नेगेटिव। जिंदगी के हर मोड़ पर हमें बी पॉजिटिव का मंत्र अपनाना चाहिए। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। अगर हम पॉजिटिव रहेंगे तो परिवर्तन में भी प्रसन्नता बरकरार रहेगी नहीं तो छोटी सी गड़बड़ी हमें बेचौन कर जाएगी। आखिर क्या कारण है कि शादी के पहले दिन जो कमरा गुलाब के फूलों और परफ्यूम से सजा होता है, शादी के कुछ सालों बाद उसी रूम में हरा बाम और झंडू बाम आ जाता है।

जीवन के हर मोड़ पर पॉजिटिव रहने की सीख देते हुए संत प्रवर ने कहा कि अगर भोजन करते समय सब्जी फीकी या ज्यादा मिर्ची वाली मिल जाए तो गुस्सा करने की बजाय यह सोच कर खा लेना चाहिए कि मुझे कम से कम भोजन तो मिला हजारों लोगों को तो भोजन भी नसीब नहीं होता है, पत्नी गुस्सैल  निकल जाए तो सोचना चाहिए कि मुझे कम से कम पत्नी तो मिली हजारों लोग कुंवारे ही घूम रहे हैं। व्यापार में घाटा लग जाए तो सोचें कि कमाते तो हर साल है घाटा तो केवल इस बार लगा है। जो चला गया वह मेरा था नहीं और जो मेरा है और कभी जाएगा नहीं, यह अकेला मंत्र हमारी सौ समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है।

इस दौरान मुनि शांतिप्रिय सागर ने कहा कि भारत पर्वों का देश है पर चातुर्मास का पर्व सबसे हटकर है। सारे पर्व दूसरों से मिलने के लिए आते हैं पर पर्यूषण पर्व खुद से मिलने, खुद को सजाने और संवारने के लिए आता है। चातुर्मास में इंद्र जल की बारिश करते हैं और गुरुजन जिनवाणी की बारिश करते हैं। जल से धरती मुस्कुराती है पर जिनवाणी से जिंदगी मुस्कुराती है। चातुर्मास में मौसम में नमी बढ़ जाती है, बैक्टीरिया में अभिवृद्धि हो जाती है, इसलिए चातुर्मास के दरमियान हमें पत्तेदार और हरी सब्जियां, जमीकंद, मांसाहार और दूर व्यसनों का त्याग करना चाहिए, दिन में एक बार भोजन करना चाहिए, रात्रि भोजन और बाजार का भोजन का त्याग कर देना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए इसलिए पलंग और गद्दे पर सोने की बजाए धरती पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए, और ज्यादा से ज्यादा मौन साधना, आराधना का अभ्यास करना चाहिए। जो 4 मास आराधना व साधना में समर्पित कर देते हैं उनके आने वाले 8 मास सुख शांति और समृद्धि से भर जाते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ नवकार और गायत्री मंत्र के सामूहिक संगान से हुआ। इस अवसर पर दीप प्रज्ज्वलित करने का लाभ घेवरचंद कानूगा, राजेन्द्र प्रजापत, पूना के आनंद छाजेड़, सुखराज मेहता ने लिया।

चातुर्मास प्रबंध समिति के ओमकार वर्मा ने बताया कि गांधी मैदान में मंगलवार को गुरु पूर्णिमा महोत्सव का धूमधाम से आयोजन होगा जिसमें राष्ट्र संतों के विशेष प्रवचन सत्संग के साथ साथ ब्रह्मांड में रहने वाली गुरु शक्ति की उपासना की जाएगी। हजारों लोग एक साथ दीपक जलाकर गुरु के आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

 



source http://krantibhaskar.com/one-only-mantra-of-happiness-life/

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