जोधपुर। मोहर्रम अकीदत व एहतराम के साथ 21 सितंबर को मनाया जायेगा। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ताजिया बनाने का काम अंतिम दौर में चल रहा है।
जंगे कर्बला में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत के ग़म में मनाये जाने वाले मोहर्रम में बस चंद दिन और बचे है। जोधपुर में ताजियों का जुलूस नहीं निकलता। यहां ताजिये एक ही स्थान पर खड़े रहते है और फिर उन्हें करबला में दफना दिया जाता है।
मोहर्रम के अवसर पर करबला के शहीदों को याद किया जाएगा और उनके लिए दुआ की जाएगी। इस दौरान अखाड़ों के उत्साही युवा क्रूर शासक यजीद को सांकेतिक रूप से ललकारते हुए ताजियों के समक्ष करतब दिखाएंगे। वहीं करबला के प्यासे शहीदों को याद करते हुए जगह-जगह लोगों को छबील पिलाई जाएगी साथ ही हलीम पर फातेहा लगाकर अकीदतमंदों नें तकसीम किया जाएगा। मोहर्रम का चांद दिखने के साथ ही घरों में इबादत का सिलसिला शुरू हो गया। घरों में भी शरबत व हलीम बना कर बांटा जा रहा है। यह सिलसिला पूरे मोहर्रम के महीने तक चलेगा।
इमाम हुसैन की शहादत
इस्लामिक नए साल की दस तारीख को नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ को जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे। लिहाजा, मोहर्रम पर पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है। करबला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है। यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सिर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए।
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