शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

विश्व-विख्यात अघोरपीठ “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” के इतिहास में 10 फरवरी का महत्व !      

विश्व-विख्यात अघोरपीठ “बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” के इतिहास में 10 फरवरी का महत्व !      

“बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड” का महत्व पौराणिक तो है ही , साथ ही यह स्थान कई अविश्वसनीय व् अदभुत घटनाओं को समेटे एक शीर्ष आध्यात्मिक तपोस्थली भी है ! एक ऐसी जगह जहां कई ईश्वरीय आत्माएं हर पल निवास करती हैं ! एक ऐसा स्थान , जहां ना जाने कितनी ऐसी घटनाएं प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में घटती रहती हैं, जिन पर ध्यान किसी-किसी का ही जाता होगा ! औघड़-संतों के बारे में ये बात तो सत्य है कि ये अजन्मा होते हैं ! चलते-फिरते शिव होते हैं ! सिर्फ समय-काल के अनुरूप उचित गर्भ में प्रवेश कर मानव-तन के रूप में सामने आते हैं !

ऐसी ही घटना है, भगवान शिव के मानव-तन , बाबा कीनाराम जी, के पुनरागमन की ! ये घटना बेहद अदभुत है ! अदभुत होने के साथ-साथ पूरे प्रमाण के साथ मौजूद है ! 10 फरवरी 1978 से शुरू हुई ये घटना बीते 36-37 वर्षों से सबके सामने हर रोज़ घट रही है, फिर भी संदेह का दायरा बड़ा विस्तृत है !                                           कपालेश्वर, औघड़-अघोरेश्वर, की लीला देखिये कि सबका कपाल फिरा दिया ! ये एहसास करा दिया कि अनुभूति और मानसिक विवेक का आलय, कपाल, भी इनकी मर्ज़ी से ही कार्यान्वित होता है ! रोज़ी-रोटी में उलझा आम आदमी तो आम आदमी, बड़े-बड़े ऋद्ध-सिद्ध भी भ्रम का शिकार हैं ! यानि बाबा कीनाराम जी के पुनरागमन की घटना का भान भी किसी-किसी को ही है !

सन 1771 में अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी , अपने 170 साल के नश्वर शरीर को छोड़ समाधि लिए ! समाधि के वक़्त भक्त-गण, पशु-पक्षी रोने लगे और यहाँ तक कि प्रकृति भी उदास हो चली ! तभी आकाशवाणी हुई और आसमान से एक विशाल भुजा सबके ऊपर से गुज़री और आवाज़ आयी कि …….. ” प्रिय भक्तों, रो मत ! यहाँ आते रहना कल्याण होता रहेगा ! मैं इस पीठ की ग्यारहवीं (11) गद्दी पर , पुनः, बाल-रूप में आउंगा और तब इस स्थली के साथ-साथ सम्पूर्ण जगत का जीर्णोद्धार और पुनः-निर्माण होगा ! ” 10 फरवरी 1978 को महाराजश्री की आकाशवाणी सत्य साबित हुई ! वो बाल-रूप में पुनः इस गद्दी के 11वें पीठाधीश्वर के रूप में पुनः आसीन हुए ! नया नाम …. अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी !                                                                                                          आज, अपने स्वरुप को एक कर्मठ युवा की चादर में, महादेव ( अघोराचार्य महाराजश्री बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी को भक्तगण इसी नाम से सम्बोधित करते हैं ) ने गोपनीयता का इतना घना आवरण ओढ़ रखा है कि “समझ के भी ना समझ पाना” जैसा वातावरण तर्क़-कुतर्क़ के मध्य इत्मिनान से पसरा है ! पर इन सबके बीच कुछ कपाल , कपालेश्वर की इस लीला को समझ रहे हैं पर समझाने की कूबत नहीं हासिल कर पा रहे !

ख़ैर ! कुछ भी हो, पर आज पूरे स्थली (“बाबा कीनाराम स्थल, क्रीं-कुण्ड”) का पूर्ण-जीर्णोद्धार व् पुनः-निर्माण तेज़ी से हो रहा है ! इसके अलावा ये भी माना जाता है कि अगर इस स्थली में कोई परिवर्तन या निर्माण होता है तो इसका असर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर होता है ! आज ये बात सबके सामने है, कि, समस्त जगत में परिवर्तन व् नवीनीकरण भी द्रुतगामी गति से हो रहा है !प्रत्यक्षम किम प्रमाणं ! बावजूद मानने-ना मानने का   आप सभी के पास सुरक्षित है ! लिहाज़ा……..मानो तो भगवान , और, ना मानो तो पत्थर !



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