जोधपुर। संत ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि कपड़े बदलकर संत बनना आसान है, पर व्यक्ति संत उस दिन बनता है जब उसका स्वभाव बदल जाता है। इसके लिए हम हाथ में दान का, दिल में दया का और जुबान में मिठास का अमृत रखें व अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत भाग पुण्य कार्यों में अवश्य लगाएं। आप अपने बच्चों के लिए भले ही बादाम की व्यवस्था कर लें, पर गरीब पड़ोसी बच्चे के लिए कम से कम मूंगफली की व्यवस्था करने का सौभाग्य ले ही लें। याद रखें, कमाता तो हर कोई है, पर ईश्वर की जब कृपा होती है तब व्यक्ति सत्कार्यों में धन लगा पाता है। संत ललितप्रभ गुरुवार को गांधी मैदान में पर्युषण पर्व के चौथे दिन भगवान महावीर का दिव्य जीवन एवं पूर्व भव विषय पर श्रद्धालुआें को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर को अपने कानों में कीलें इसलिए खानी पड़ी क्योंकि उन्होंने पूर्व भव में अपने सेवक के कानों में खोलता हुआ शीशा डलवा दिया था। जब तीर्थकर पुरुषों को भी किए गए कर्मों क ा फल भोगना पड़ता है तो हम किस बाग की मूली है। इसलिए हम कर्म करते समय सावधान रहे। याद रखें हम कर्म करने में स्वतंत्र है, पर उसे वापस भोगने में परतंत्र हो जाते है। हमें चाहिए कि हम एेसे कर्मों के बीज न बोएं कि जिनकी फसल काटते वक्त हमें खेद और ग्लानि का अनुभव करना पड़े। संतप्रवर ने कहा कि पर्युषण पर्व के चौथे दिन हमें चार चीजों को जीवन में जोडऩा चाहिए और चार चीजों को हटाना भी चाहिए। दान, शील, तप और भाव इन चारों को जीवन का हिस्सा बनाए और क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों को जीवन से दूर रखना चाहिए।
दिव्य सत्संग का शुभारम्भ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश दलपत भंडारी, लाभार्थी परिवार सुखराज मेहता, सिद्धार्थ-पूर्णा मेहता, शिक्षाविद हरिप्रकाश मंगला, ललित सेठिया, शांतिचंद भंडारी चारूचंद भंडारी, नितेश भंडारी, रामजीवन पुंगलिया ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। संबोधि धाम के महासचिव अशोक पारख ने बताया कि शुक्रवार को सुबह 8.45 बजे पर्युषण के पांचवे दिन संतों के सान्निध्य में भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया जाएगा जिसमें चौदह स्वप्नों को उतारा जाएगा एवं पलना झुलाया जाएगा।
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