गुरुवार, 16 अगस्त 2018

संतों की बातों को जीवन में उतारकर बनाए जीवन सार्थक 

जोधपुर। गुरों का तालाब स्थित श्री चिंतामणी पाश्र्वनाथ जैन मंदिर तीर्थ में चातुर्मास के अवसर पर मुनि लाभरूचि ने अपने दैनिक प्रवचन में कहा कि मानव जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है लेकिन व्यक्ति अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर जिज्ञासाओं की तृप्ति के लिए अहनिंश घूमता रहता है यह सुख व्यक्तिगत है। इसके द्वारा वह केवल अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकता है। इस परिधि से बाहर निकलकर हमें परमार्थ की बातों पर ध्यान देना चाहिए। इस बारे में संत मुनि की बातों को जीवन में उतारें एवं अपना जीवन सार्थक बनाएं। मंदिर के ओमप्रकाश चौपड़ा ने बताया कि गुरों का तालाब में प्रत्येक शुक्रवार को एकासना, आराधना विशेष आरती एवं प्रभु पाश्र्वनाथ एंव माता पदमावती की आंगी व विशेष पूजा अर्चनाओं का सिलसिला जारी है।

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ महावीर भवन निमाज हवेली में आचार्य आनंदऋषि की 119वीं व साध्वी झंकार कंवर की 109वीं जयंती आयंबिल, सामायिक व एकासन दिवस के रूप में तप व त्याग के साथ मनाई गई। इस अवसर पर साध्वी डॉ. सुमंगलप्रभा ने प्रवचन में कहा, कि आचार्य आनंदऋषि 17 भाषाओं के ज्ञात थे आपको लंबे समय पर आचार्य पद पर रहकर श्रमण संघ में महत्वपूर्ण योगदान दिया। साध्वी झंकारकंवर ने लवेराकलां में जन्म लिया और नागौर में दीक्षा हुई। आपने जोधपुर व महामंदिर में कई चातुर्मास किए। मंत्री चंपालाल बागरेचा ने दोंनो के गुणगान में एक भजन प्रस्तुत कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। साध्वी सुवृद्धि व साध्वी रजतप्रभा ने दोनों के जीवन के संस्मरण सुनाए। त्रिशला महिला मंडल की शिल्पा संकलेचा, शशि पटवा व पूजा सुराणा ने मधुर भजन प्रस्तुत किए।

खैरादियों का बास स्थित श्री राजेन्द्र सूरि जैन ज्ञान मंदिर त्रिस्तुति पौषधशाला में साध्वी दर्शनकला ने प्रवचन में कहा कि बहुत सी योनियों में भ्रमण करके जीवन किसी महान पुण्य के कारण मनुष्य योनि प्राप्त करता है। मनुष्य योनि भी प्राप्त होने के पश्चातृ भी पुण्य में कहीं कमी रहती है तो दरिद्रता, रोग, अपाहिज व अंधापन जीवन मिले तो बहुत अपमान व कष्ट भोगना पडता है। इसलिए दुर्लभता से प्राप्त मनुष्य जन्म में संसार के सभी बंधनों से मुक्त होने के लिए परमात्मा की सेवा आराधना करनी चाहिए क्योंकि वे ही कर्मफलदाता व मोक्षदाता है। साध्वी जीवन कला ने कहा धर्म का परम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। जीव के भौतिक अंश का नाश ही निर्वाण है यह अंश तभी नष्ट होगा जब मनुष्य कर्मफल से मुक्ति प्राप्त कर ले।

 



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