जोधपुर। राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर एवं विद्वत परिषद् विद्या भारती जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में आदर्श वाटिका आदर्श विद्यामंदिर उच्च माध्यमिक, केशव परिसर कमला नेहरू नगर में चार अगस्त से दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इस संगोष्ठी का विषय अभिनव भारत-संकल्पना एवं स्वरूप रखा गया है।
विद्वत परिषद् विद्या भारती जोधपुर के संयोजक डॉ. नरपतसिंह शेखावत और संगोष्ठी के सहसंयोजक चेतनसिंह, वासुदेव, महेंद्र दवे व निर्मल गहलोत ने बताया कि दो दिवसीय संगोष्ठी में उद्घाटन एवं समापन सत्र के अतिरिक्त छह अलग-अलग सत्रों में विषय से संबंधित उप विषय पर चर्चा की जाएगी। संगोष्ठी में आस्ट्रेलिया, जर्मनी एवं मिश्र सहित अपने देश के विभिन्न राज्यों से 300 विद्धान भाग लेंगे। दो दिनों में विभिन्न विषय विशेषज्ञों के 60 शोध पत्रों का वाचन किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि गोष्ठी में अवनीश भटनागर, डॉ. पीएन शास्त्री, ज्ञानेश्वर पुरी, साध्वी प्रीति प्रियंवदा, प्रो. बलराजसिंह, रतनलाल डागा, प्रो. सीवीआर मूर्ति, प्रो. सम्पतराज वडेरा, डॉ. भगवतीप्रकाश, प्रकाश जीरावला, निम्बाराम, डॉ. रवि गांधी, कान्तिलाल ठाकुर एवं हनुमानप्रसाद व्यास एवं डॉ. डीडी ओझा जैसे विशेषज्ञों का मार्गदर्शन मिलेगा।
यह रहेंगे उपस्थित
संगोष्ठी में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के निदेशक एसआर भट्ट, जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. भगवती प्रकाश, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय मंत्री अवनीश भटनागर, राजस्थान संस्कृत अकादमी की अध्यक्ष डॉ. जया दवे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह मुकन्द दा, विद्या भारती राजस्थान के क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रो. भरतराम कुम्हार, महापौर घनश्याम आेझा भी उपस्थित रहेंगे। संगोष्ठी का उद्घाटन चार अगस्त को प्रात: दस बजे ओम आश्रम जॉडन के संत ज्ञानेश्वर पुरी एवं ललिता आश्रम जोधपुर की संस्थापिका साध्वी प्रीति प्रियंवदा के सान्निध्य में होगा।
यह है संगोष्ठी का कारण
उन्होंने बताया कि भारत विश्व का प्राचीनतम देश है। भारत में ही सर्वप्रथम सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ। व्यक्ति जीवन एवं समाज जीवन की उत्कृष्ट व्यवस्थाएं यहीं पर विकसित हुई। इसी भूमि ने सम्पूर्ण विश्व को अध्यात्म का श्रेष्ठ तत्वचिन्तन दिया। इसी भूमि ने विश्व कल्याण का मार्ग दिखाया। इस समाज में कला एवं साहित्य ने चरमोत्कर्ष को छुआ। 64 कलाएं इसी भूमि पर फलीफूली थीं। विश्व को शून्य एवं दशमलव का ज्ञान, गुरुत्वाकर्षण का ज्ञानसूर्य, चन्द्र की गति, खगोलीय ज्ञान, विज्ञानपारद, प्रकाश की ध्वनि जहाज, धातु का ज्ञान गति व विज्ञान समुद्री निर्माण विमान चलाना, धातु के दर्पण बनाने का ज्ञान, फौलाद बनाने की कला, स्वर्ण रजत व ताम्र भस्म को औषधि रूप में प्रयोग करने का ज्ञान सर्वप्रथम इसी देश ने सबको दिया था। यहां घी, दूध की नदियां बहती थी। यह देश सोने की चिडिय़ा कहलाता था। अर्थात् भारत वैभवशाली और उसकी प्रजा अत्यन्त सुखी व समृद्ध थी। अब एेसे गौरवशाली देश को जब हम वर्तमान में देखते है तो निराश और हताश हो जाते है। यहां का जनमानस अपने स्व को भूल चुका है। राष्ट्रीय गौरव से अनभिज्ञ है। उसे फिर से महान भारत के रूप में खड़ा करना है। यही इस संगोष्ठी का प्रयोजन है।
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